श्री यमुनाष्टक (संस्कृत)
नमामि यमुनामहं सकल सिद्धि हेतुं मुदामुरारि पद पंकज स्फ़ुरदमन्द रेणुत्कटाम । तटस्थ नव कानन प्रकटमोद पुष्पाम्बुनासुरासुरसुपूजित स्मरपितुः श्रियं बिभ्रतीम ॥१॥ कलिन्द गिरि मस्तके पतदमन्दपूरोज्ज्वलाविलासगमनोल्लसत्प्रकटगण्ड्शैलोन्न्ता । सघोषगति दन्तुरा समधिरूढदोलोत्तमामुकुन्दरतिवर्द्धिनी जयति पद्मबन्धोः…